sriroma Offline

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prithveeraj_singh
prithveeraj_singh: जिस कागज पे कोई इबादत न हो .
उस कागज को दिल से लगाएगा कौन .
फ़ेंक देंगे उसे फिर कदमो तले,
पलकों पे अपनी बिठाएगा कौन .
मेरा जीवन भी है उस कागज के जैसा ,
मुझे यूँ जमीं से उठाएगा कौन .
जिस कागज पे कोई .......................
मेरा जीवन भी उस कागज के जैसा ,
लिखी हैं इबादत मुहब्बत की जिस पे .
मगर टूटे वादे कदम लडखडाये ,
पड़ा हैं वो कदमो में कागज का टुकड़ा.
हुआ धुल अब तो जीवन ये मेरा .
जिस कागज पे .....................
जिस मंदिर में कोई पुजारी ना हो ,
उस मंदिर में दीपक जलाएगा कौन .
जिस दीपक के संग कोई बाती न हो ,
उस दीपक को घर में सजाएगा कौन .
जिस आँगन में किलकारी गूंजी नहीं '
उस आँगन में खुशिया लायेगा कौन .
जिस कागज पे ..........................
दुख देखे बहुत में रोया नहीं ,
सोचा बादल हे ये टल जायेगा भी ,
पर बादल रुका बन के ये काली घटा,
गम बरसने लगा बन के सावन यहाँ .
दिल हुआ चूर चूर मन बहकने लगा ,
काली पलके ये आंसू बन बरसने लगी ,
जिस कागज पे.................................
मैं चाहूँ की चंदा की किरणे सभी,
मेरे दिल के चिरागों को रोशन करे,
मगर चाँद भी छुप गया डर के हम से ,
जो साथी था दिल का हुआ दूर हमसे .
जिस कागज पे ..................
13 years ago ReplyReport Link
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